Tuesday, April 24, 2012

My Dad's creations


जीवन की ढलने लगी सांझ ..

"उम्र घट गई ..डगर कट गई..
जीवन की ढलने लगी सांझ ..
बदले हैं अर्थ.... शब्द हुए व्यर्थ ...
शांति बिना खुशियाँ हैं बाँझ ...
सपनो में मीत..... बिखरा संगीत ...
ठिठक रहे पाँव.. झिझक रही सांस
जीवन की ढलने लगी सांझ ...!!"
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29th April
"हर २९ अप्रैल को एक नई सीढ़ी चढ़ता हूँ..
नए मोड़ पर औरों से कम स्वयं से ज्यादा लड़ता हूँ ....!!
मैं भीड़ को चुप करा देता हूँ ...
मगर अपने को जवाब नहीं दे पता...
मेरा मनं मुझे अपनी ही अदालत में खड़ा कर जब जिरह करता है 
मेरा हलफनामा मेरे ही खिलाफ जब पेश करता है ...
अपनी ही नज़रों में मैं अपना ही गुनहगार बन जाता हूँ ...!!"

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सूर्य एक सत्य है..मगर ओस भी तो एक सच्चाई है ...
कहते हैं ओस शनिक है...
सूर्य फिर भी उगेगा ... 
लेकिन मेरी जीवन बगीची की हरी हरी टूब पर 
ओस की बूँद हर मौसम में नहीं मिलेगी ...!!
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आओ फिर से दिया जलाएं 
"आओ फिर से दिया जलाएं 
भरी दुपहरी में अँधियारा …..
सूरज परछाई से हारा……
अंतर्मन का नेह निचोड़ें …..
बुझी हुई बत्ती सुलगाएं ….
आओ फिर से दिया जलाएं…!!
हर पड़ाव को समझें मंजिल ….
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझिल …
वर्तमान के मोह जाल में …
आने वाला कल  भुलाएँ….
आओ फिर से दिया जलाएं …!!
आहुति बाकि यग्य अधुरा….
अपनों के विघ्नों ने घेरा ….
अंतिम जय का वज्र बनाने …
मन का मैल धोएं गलाएँ ...
आओ फिर से दिया जलाएं ..!!"
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मेरे प्रभु मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना की मैं -
गैरों को गले से लगा सकूँ ..
मुझे इतनी रुखाई कभी मत देना..!!

सूरज सरों पर आग उगलता दिखाई दे 
मुझको ये  शहर आज पिघलता दिखाई दे...
मैं इस नदी के पार उतर जाऊंगा मगर ...
आगे कोई चीराग तो जलता दिखाई दे...
ख़ुदा हमको ऐसी खुदाई दे ..
की अपने सिवा हमको कुछ दिखाई दे....!!


1 comment:

  1. मैं इस नदी के पार उतर जाऊंगा मगर ...
    आगे कोई चीराग तो जलता दिखाई दे...
    ख़ुदा हमको ऐसी खुदाई न दे ..
    की अपने सिवा हमको कुछ दिखाई न दे....!

    Awesome lines...

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