My thoughts...
ज़िन्दगी की रेड लाइट..
भागती हुई ज़िन्दगी…
हर मोड़ पर बस दौड़ ही दौड़।
ना ठहराव, ना विराम —
बस कल के पीछे भागता हुआ आज।
कभी सोचा है…
अगर ज़िन्दगी में भी रेड लाइट होती,
तो हम रुक पाते,
साँस भर पाते,
देख पाते उस अजनबी को
जो उसी ठहराव में हमारे संग खड़ा है।
उस पेड़ को निहार पाते
जिस पर एक फूल खिला है —
मौन में भी जीवन की गवाही देता हुआ।
उन राहगीरों को देख पाते
जो अपनी-अपनी दिशाओं में चलते हैं,
मानो कोई अदृश्य धारा सबको आगे ले जा रही हो।
फिर एक गहरी साँस लेकर
हम फिर से चल पड़ते —
पर इस बार आँखों में और दिल में
कुछ देखा हुआ,
कुछ समझा हुआ,
कुछ जिया हुआ समेटकर।
शायद…
ज़िन्दगी की सबसे बड़ी कमी यही है —
कि इसमें रेड लाइट नहीं है।
वरना ठहरने का भी अपना
By Parul Bhatnagr
23rd September 2025...